सिंघाड़ा ज्यादातर झील में होता है। जब यह फल सूख जाता है तो बहुत कड हो जाता है। कई लोग इसे भाप कर के खा लेते हैं। कठोर शुष्क फल जमीन और मिठाई या फसलों में अपने आटे से बनाया जा सकता है। उबले सिंघाड़ा खाने के लिए बहुत स्वादिष्ट होते हैं। कई लोग उपवास के दौरान इसका इस्तेमाल करते हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में सिंघाड़ा प्रचुर मात्रा में होते हैं। क्यूकी कश्मीर को जल क्षेत्र माना जाता है, इसलिए झील में उच्च प्रकार के सिंघाड़ा होते है। सिंघाड़ा में दूध से 22 फीसदी ज्यादा मिनरल साल्ट होते हैं।
सिंघाड़ा को फल माना जाता है, इसलिए इसे सुखाकर आटा बनाया जाता है, इसलिए इसके आटे पुरी, रोटी, लापसी, लड्डू, शीरा, करी और कई अन्य चिजे बनाए जाते हैं। और उपवास मे हम उपयोग कर सकते है। सिंघाड़ा का आटे की खीर बहुत ही स्थल बन जाती है। शिंघोडा में एंटीऑक्सीडेंट और कैंसर वीरोधी गुण बहुत होते हैं। जो कैंसर को रोकने में मददगार हो सकता है।
ज्यादातर लोग सिंघाड़ा का इस्तेमाल भोजन के रूप में करते हैं। यह शरीर की पुष्टि करता है। अगर धातु को पतला हो गया है, तो यह मोटा करता है। सिंघाड़ा शरीर की कमजोरी को दूर करता है। बल देता है। शरीर में चेतना और प्रेरणा का संचार करता है। गर्भावस्था के दौरान रक्तस्राव होने पर सिंघाड़ा को रगड़ कर दूध के साथ देने से दोष दूर हो जाता है।
सिंघाड़ा शीतल, स्वादिष्ट और भारी लगता है, यह कब्ज़ को दूर करता है और सूजन और कुष्ठ रोग को दूर करता है। रुचि लाता है। रक्त विकारों को दूर करता है। बीमार आदमी को सिंघाड़ा का शिरा दिया जाता है। यह दुर्बलों के लिए उत्तम आहार है। सिंघाड़ा के सेवन से अतिसार, कुष्ठ रोग आदि ठीक हो जाते हैं। गर्भवती महिला को कांजी दी जा सकती है। पित्त अतिसार में इसका सेवन करने से बहुत से लाभ होते हैं। उबले हुए सिंघाड़ा स्वादिष्ट होते हैं, इसलिए सभी को पसंद आते हैं। इसका उपयोग फ्रैक्चर और आमवाती रोगों में किया जाता है। यह प्यास बुझाता है।
40 ग्राम सिंघाड़ा आटा, बादाम, पिस्ता, चारोली, पाताल तुम्बाडी, सफेद मिर्च, काली मिर्च की जड़, सूंठ लें। गोंद, दालचीनी, बे पत्ती, संवहनी आइटम जोड़ें। इसमें तीन गुना ज्यादा चीनी डालें। घी जितना सूट करता है, उतना ही तैयार करें। दस से तीस ग्राम इस को खाने से डायरिया, पित्त की हानि, मूत्र नली, मूत्र रोग, सनिप, मल और कंपन जैसी बीमारियां ठीक हो जाती हैं।
सिंघाड़ा का चूर्ण , गेहूं का सार, नागरमोथ, कपूर, पीली चंदन, रतनांजलि, जटामसी का पाउडर बनाकर ये सभी चीजें पांच ग्राम के लिए करें। यह पाउडर उत्सर्जन, एसिडिटी, आंतों में खट्टापन, गला रोग मे उपयोगी है। पाउडर दूध के साथ इस्तेमाल करने से नेत्र रोगों को ठीक करता है। शरीर को रगड़ने से दाह, खुजली, खराजवा ठीक होता हैं। पसीने की बदबू भी ठीक हो जाता है।
थोड़ा सिंघाड़ा का आटा लें और उसमें चीनी और ठंडे पानी मिलाकर पेस्ट को गाढ़ा कर लें। यह कब्ज से भी छुटकारा दिलाता है। इसके पत्तों का प्रयोग अतिसार और रक्तमेह में किया जाता है। इसका काढ़ा पेट के कीड़ों को ठीक करने में उपयोगी होता है। बवासीर जैसी कठिन समस्या से निजात दिलाने में सिंघाड़ा कारगर साबित होता है।
सिंघाड़ा वास्तव में बहुत अनुशासित और पौष्टिक है, इसका अधिक मात्रा में उपयोग करने से शरीर को पर्याप्त पोषण मिलता है, शरीर को तरोताजा होने से बचाता है और शरीर धनु वगैरह शरीर को फिट और तरोताजा रखने के लिए सिंघाड़ा का उपयोग करने जैसा है। रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल हृदय रोग का कारण बनते हैं। इसे नियंत्रित करने में सिंघाड़ा मददगार हो सकता है।