आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं कि फिल्म में हीरो बनने के लिए 10 साल की छोटी सी उम्र में घर से भाग गया था और वह आज बूट चप्पल बेचकर करोड़ों रुपए कमाता है। तो चलिए जानते है इनके बारे मे।

आज हम आपको ऐसे दो दोस्तों की बात करने जा रहे जिन्होंने बूट और चप्पल बेचकर करोड़पति बन गए हैं, यह दोनों युवान के नाम है रमेश धामी और श्रेयांश भंडारी है, बड़े-बड़े लोगो यह दोनों मित्रों दोस्तों की जूते और चप्पल के बहुत तारीफ करते है, रतन टाटा से लेकर बराक ओबामा तक सब इसके जूते और चप्पल की तारीफ कर रहे हैं।

आपको बता दें कि जब रमेश धामी 10 साल के थे तब उन्होंने हिंदी सिनेमा में हीरो बनने के लिए घर से भाग गया था। उसको बचपन से ही हिन्दी फिल्म मे हीरो बनने का शोख था। रमेश धामी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में रहता था। घर से भाग जाने के बाद वह एक शहर से दूसरे शहर तक घूमता फिरता था और 2 साल के बाद यानी कि 12 साल की उम्र में वह मुंबई चला गया और वहां पे उसकी मुलाकात श्रेयांश भंडारी के साथ हुए थी।

मुंबई में रमेश धामी की मुलाकात राजस्थान के श्रियांश भंडारी के साथ हुई बाद में श्रियांश ने रमेश को पुराने जूते और चप्पल बेचने का आईडिया दिया। और दोनों को यह विचार बहुत ही पसंद आया। उसके बाद दोनों ने कड़ी मेहनत की ओर इस विषय पर आगे जाने के लिए महेनत करना शुरू कर दिया। दोनों ने मिलकर ग्रीनसोल नाम के स्टार्ट शुरू किया। यह कंपनी पुराने जूते और चप्पल को मरम्मत कर रही थी, और उसके बाद वह नया बनाकर कम कीमत में बेच रही थी।

उसके बाद ग्रीनसॉल कंपनी को धीरे धीरे काम मिलने लगे उसके बाद सिर्फ 6 साल में 3 करोड़ रुपए का टर्नओवर हो गया। वह कंपनी मुनाफा करने के अलावा दान भी करती थी। ग्रीनसोल 14 राज्यों में 39 लाख जूते दान कर चुकी है और इसके लिए उसने 65 कंपनियों के साथ करार भी किया है।

यह ग्रीनसॉल कंपनी की शुरुआत 2015 में मुंबई में हुई थी। आज वह इतनी बड़ी हो गई है कि फोब्स और वोग भी उसकी तारीफ कर रहा है, यह सफलता हासिल करना आसान काम नहीं था। इन दोनों को करोड़पति बनने से पहले बहुत कुछ झेलना पड़ा था। जब रमेश धामी मुंबई आया था तब घाटकोपर विस्तार में एक होटल में काम कर रहा था।  थोड़ी समय बाद वह होटल बंद हो गया था। इसलिए उसकी नौकरी भी चली गई थी और वह रेलवे स्टेशन के फुटपाथ पर कई दिन गुजरता था।

इसी समय में रमेश धामी को बुरे नशे की भी आदत पड़ गई थी। और जब उसके पास पैसे नहीं थे तब वह छोटे बड़े अपराध करना भी शुरू कर दिया था। और तभी एक एनजीओ ने रमेश धामी का जीवन सुधार दिया और उसी दौरान उसकी मुलाकात श्रेयांश भंडारी से हुई थी। दोनों ने पुराने जूते बेचने की के लिए कड़ी मेहनत करके बहुत बड़ा नाम कमाया।  ग्रीनसॉल सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मशहूर हो गई है।

 

यह कहानी हम सबके लिए बहुत प्रेरणा देती है यह हमें सिखाता है कि पैसे कमाने के लिए कोई उम्र की जरूरत नहीं होती है और आपके पास पैसे हैं कि नहीं वह उसका भी कोई फर्क नहीं पड़ता यहां से सिर्फ इस बात पर निर्भर रहता है कि आप कितनी मेहनत करते हो और आपके पास कौन-कौन से कौशल्य है और आपको आप कड़ी मेहनत कर कर के आसमान को भी छू सकते हो और करोड़पति बन सकते हो