हर्पीस वैरीसेला जोस्टर नामक वायरस के कारण होता है। यह एक छूत की बीमारी है, इसलिए बहुत सावधानी बरतना बहुत जरूरी है। यह बीमारी किसी को भी और किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन माना जाता है कि वायरस व्यक्ति को प्रभावित करता है। चिकनपॉक्स होता है क्योंकि इसमें भी वही वायरस होता है, जो वायरल एलर्जी या फंगल इंफेक्शन में पाया जाता है।
यदि किसी व्यक्ति को पहले चिकनपॉक्स हुआ है, तो उनके शरीर में वैरीसेला जोस्टर वायरस पहले से मौजूद है, और इसीलिए यह हर्पीस का कारण बन सकता है। जब किसी संक्रमित व्यक्ति की त्वचा की सतह पर दाद वायरस मौजूद होता है, तो यह किसी व्यक्ति के संपर्क में आने से या उस व्यक्ति के साथ शारीरिक संपर्क के माध्यम से भी आसानी से फैल सकता है। हालांकि, यह समझना भी जरूरी है कि यह संक्रमित व्यक्ति द्वारा वॉशबेसिन, टेबल या किसी भी चीज को छूने से नहीं फैलता है।
हर्पीस रोग भी असुरक्षित यौन संबंध के कारण होता है। अगर मुंह में चोट लगने से किसी व्यक्ति के साथ ओरल सेक्सुअल संबंध हो तो यह बीमारी जोर पकड़ सकती है। इसके अलावा सेक्स टॉयज शेयर करना और संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संपर्क रखने से भी हर्पीस बनती है। बारिश और सर्दियों में हर्पीस ज्यादा खतरनाक होती है। हर्पीस वायरस हमेशा वातावरण में मौजूद है। सर्दियों और बारिश में उसके मामले ज्यादा नजर आते हैं।
हर्पीस या ओरल हर्पीस और दूसरा HSV-2, यानी हर्नियेटेड हर्पीस या हर्पीस टाइप। अगर इस बीमारी के लक्षणों की बात करें तो कई लोगों में कई महीनों तक लक्षणों का कोई असर नहीं दिखता है। यही कारण है कि यह रोग घातक हो सकता है कुछ लोगों में, 10 दिनों के भीतर, हर्पीस अपना रूप दिखाना शुरू कर देता है।
पानी से भरा छाला अगर दाने की तरह निकल आए तो उसे तोड़ दें और उसे न छुएं। हरपीज के मामले में इसी तरह के छाले शरीर के प्राइवेट पार्ट और दूसरे अंगों में भी देखने को मिलते हैं। जब ये धीरे-धीरे बढ़ते हैं तो टूटकर टूट जाते हैं और जब ये शरीर के दूसरे हिस्सों में मिल जाते हैं तो वहां से संक्रमण भी दूसरी जगहों पर फैल जाता है। पूरे शरीर में खुजली होती है।
इसके उपचार के लिए कुछ थैरेपी भी अपनाई जा सकती हैं, जैसे गर्म पानी में थोड़ा सा नमक मिलाकर पीने से लाभ मिलता है। पेट्रोलियम जेली को प्रभावित हिस्से पर लगाने से आराम मिलता है। लेकिन जब तक हर्पीस के लक्षण पूरी तरह से कम न हो जाएं तब तक कोई भी यौन क्रिया न करें। हालांकि घरेलू नुस्खों के साथ डॉक्टर से इलाज भी मांगा जाना चाहिए। नहीं तो स्थिति गंभीर हो सकती है।
हर्पीस के इलाज के लिए शरीर में मौजूद वायरस को नष्ट करने के लिए एसाइक्लोविर दवाएं जैसी एंटीवायरल दवाएं दी जाती हैं, मरीज को दवा और वेलासाइक्लोविर दवाएं भी दी जा सकती हैं। रोगी को इन दवाओं के साथ सहायक उपचार भी दिया जाता है। हर्पीस होने पर घाव पर आइस पैक लगाएं। इससे दर्द और खुजली से राहत मिलेगी। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि बर्फ का सीधे उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। बैग में कोई कपड़ा डालें।
शहद भी इस बीमारी को दूर करने में काफी कारगर माना जाता है। इसे रोजाना हर्पीस वाले स्थान पर लगाने से इस समस्या से बहुत जल्दी आराम मिल सकता है। एलोवेरा में उच्च औषधीय गुण होते हैं। त्वचा संबंधी समस्याओं से राहत पाने के लिए यह बहुत फायदेमंद होता है। एलोवेरा जेल को घाव पर लगाने से तुरंत आराम मिलता है।
शहतूत की जड़ में कई तरह के एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं। जो इस बीमारी से निजात दिलाने में मदद करता है। जिसके लिए मुलठी की जड़ का चूर्ण बनाकर घाव पर लगाएं। जैतून के तेल में एंटी-बैक्टीरियल तत्व भी होते हैं। जो त्वचा के अंदर जाकर चोट से छुटकारा दिलाता है। रोजाना जैतून का तेल लगाने से इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है।